आंवळा क्या है? आंवळा के फायदे , आंवळा के नुकसान
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आज हम ऐसे वृक्ष के बारे में जानने वाले है
जिससे हमे बहुत फायदा होने वाला है।
आज हम आवळा के बारे में जानने वाले है।
आंवळा क्या है?
आंवला को आयुर्वेद में अमृतफल या धात्रीफल कहा गया है। वैदिक काल से ही आंवला (phyllanthus emblica) का प्रयोग औषधि के रूप में किया जा रहा है।
पेड़-पौधे से जो औषधि बनती है उसको काष्ठौषधि कहते हैं और धातु-खनिज से जो औषधि बनती है उनको रसौषधि कहते हैं। इन दोनों तरह की औषधि में आंवला का इस्तेमाल किया जाता है। यहां तक कि आंवला को रसायन द्रव्यों में सबसे अच्छा माना जाता है यानि कहने का मतलब ये है कि जब बाल बेजान और रूखे-सूखे हो जाते हैं तब आंवला का प्रयोग करने पर बालों में एक नई जान आ जाती है। आंवला का पेस्ट लगाने पर रूखे बाल काले, घने और चमकदार नजर आने लगाते हैं।
शरीर से विषारी पदार्थ निकाले
आवंळा एक ऐसा फल है, जिसमें पानी की मात्रा भी होती है. इसका मतलब इसे खाने से यूरिन में होने वाली परेशानियाँ दूर होती है. और यूरिन के द्वारा शरीर के सारे विषेले तत्व निकाल जाते है. यूरिन के दवाला शरीर से अनावश्यक नमक, एसिड, पानी निकल जाता है. इससे वजन भी कम होता है क्यूंकि शरीर में 4% फैट यूरिन का होता है. आमला खाने से ये सब परेशानी नहीं होती और यूरिन इन्फेक्शन व किडनी की प्रॉब्लम नहीं होती है.
आंवळा शुद्ध रक्त के लिए
आँवले का जूस पीने से रक्त साफ होता है और रक्त सम्बंधित विकार दूर रहते हैं। चूंकि आँवला एंटीऑक्सीडेंट से भरा हुआ है। यह रक्त शोधक के रूप में काम करने के साथ ही हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओं को भी बढ़ाता है। आयरन में समृद्ध होने के कारण, आँवला रक्त में आयरन के स्तर को बढ़ाकर एनीमिया को भी रोक सकता है।
आंवळा स्वच्छ श्र्वसन प्रणाली के लिए
श्वसन प्रणाली साँस लेने एवं छोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन सर्दी, खांसी, दमा, ब्रोंकाइटिस एवं यक्ष्मा जैसे श्वसन संबंधी रोग सांस लेने में गंभीर कठिनाई पैदा कर देते हैं। आँवला इन कठिनाइयों को दूर करने मे निपुण है। परंतु आँवला शीतल स्वाभाव का होता है, इसलिए इसका सेवन शहद या फिर काली मिर्च के साथ ही करना चाहिए।
आँवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है और इसको श्वसन संबंधी परेशानियों को कम करने के लिए लाभकारी माना जाता है। इस को सर्दी और खांसी के इलाज के लिए एक हर्बल दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आँवले का सेवन करने से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिस से फ़्लु और गले के संक्रमण को कम करने में मदद मिलती है । यह पुरानी खांसी, टीबी और छाती की समस्याओं से निपटने में मदद करता है। यह अस्थमा के लक्षणों को कम करने के लिए भी लाभदायक माना जाता है।
धातु रोंग में आंवळा के फायदे
आंवले के गुठली रहित 10 ग्राम चूर्ण को धूप में सुखा लें। इसमें दोगुनी मिश्री मिला लें। इसे ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करें। इससे स्वप्नदोष, शुक्रमेह (spermatorrhoea) आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ मिलता है
मेटाबोलीक एक्टिविटी – प्रोटीन युक्त खाना लेने से हमारा शरीर हमेशा फिट और सेहत मंद रहता है. शरीर में मसल को, सेल को बढ़ने के लिए बहुत अधिक प्रोटीन चाहिए होता है.आंवला में अत्यधिक प्रोटीन होता है, जिससे लेकर हम हमेशा फिर रह सकते है.
लाभसंपादित
आँवला दाह, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है। सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है। दाँत-मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी, नेत्र ज्योति बढ़ना, बाल मजबूत होना, सिर दर्द दूर होना, चक्कर, नकसीर, रक्ताल्पता, बल-वीर्य में कमी, बेवक्त बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होना, यकृत की कमजोरी व खराबी, स्वप्नदोष, धातु विकार, हृदय विकार, फेफड़ों की खराबी, श्वास रोग, क्षय, दौर्बल्य, पेट कृमि, उदर विकार, मूत्र विकार आदि अनेक व्याधियों के घटाटोप को दूर करने के लिए आँवला बहुत उपयोगी है
परिचयसंपादित
इसके फल पूरा पकने के पहले व्यवहार में आते हैं। वे ग्राही (पेटझरी रोकनेवाले), मूत्रल तथा रक्तशोधक बताए गए हैं। कहा गया है, ये अतिसार, प्रमेह, दाह, कँवल, अम्लपित्त, रक्तपित्त, अर्श, बद्धकोष्ठ, वीर्य को दृढ़ और आयु में वृद्धि करते हैं। मेधा, स्मरणशक्ति, स्वास्थ्य, यौवन, तेज, कांति तथा सर्वबलदायक औषधियों में इसे सर्वप्रधान कहा गया है। इसके पत्तों के क्वाथ से कुल्ला करने पर मुँंह के छाले और क्षत नष्ट होते हैं। सूखे फलों को पानी में रात भर भिगोकर उस पानी से आँख धोने से सूजन इत्यादि दूर होती है। सूखे फल खूनी अतिसार, आँव, बवासरी और रक्तपित्त में तथा लोहभस्म के साथ लेने पर पांडुरोग और अजीर्ण में लाभदायक माने जाते हैं। आँवला के ताजे फल, उनका रस या इनसे तैयार किया शरबत शीतल, मूत्रल, रेचक तथा अम्लपित्त को दूर करनेवाला कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार यह फल पित्तशामक है और संधिवात में उपयोगी है। ब्राह्मरसायन तथा च्यवनप्राश, ये दो विशिष्ट रसायन आँवले से तैयार किए जाते हैं। प्रथम मनुष्य को नीरोग रखने तथा अवस्थास्थापन में उपयोगी माना जाता है तथा दूसरा भिन्न-भिन्न अनुपानों के साथ भिन्न-भिन्न रोगों, जैसे हृदयरोग, वात, रक्त, मूत्र तथा वीर्यदोष, स्वरक्षय, खाँसी और श्वासरोग में लाभदायक माना जाता है।
अभी हम आंवळा के नुकसान जानेंगे
तो देखा आपने कैसे आँवला सर के बालों से लेकर पैर के अंगूठे के नाखून तक एवं सभी भागों और प्रणालियों के लिए फायदेमंद है। आँवला हालांकि एक प्राकृतिक औषधीय फल है, परंतु इसके भी कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं। लेकिन अच्छी बात यह है इसके दुष्प्रभाव दुर्लभ हैं और आमतौर पर ज़्यादा मात्रा में सेवन से होते हैं।
आंवले की शीतल प्रवृति की वजह से यह सर्दी और खांसी ट्रिगर पर बुरा असर डाल सकता है। इसके इस दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए इसका सेवन काली मिर्च या शहद के साथ करें।
यदि आप इसका सेवन पानी के साथ ना करें तो इससे आपको कब्ज हो सकता है ।
आँवला मधुमेह (Diabetes) की दवा के साथ हस्तक्षेप कर सकता है। इसका आचार रक्तचाप के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए हृदय रोगी को इसका सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिए।
आँवला त्वचा की नमी को भी कम कर सकता हैं। इसीलिए आँवला खाने के साथ ज़्यादा मात्रा में पानी पीना भी महत्त्वपूर्ण है
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